Friday, January 21, 2011

Mahatma Gandhi's Thought for Democracy . . . . . .

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देश  का बँटवारा होते हुए भी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा मुहैया किये गये साधनों के जरिये हिन्दुस्तान को आजादी मिल जाने के कारण मौजूदा स्वरुपवाली कांग्रेस का काम अब खतम हुआ- यानी प्रचार के वाहन और धारा सभा की प्रवृत्ति चलाने वाले तंत्र के नाते उसकी उपयोगिता अब समाप्त हो गयी है। शहरों और कसबों से भिन्न उसके सात लाख गाँवों की दृष्टि से हिन्दुस्तान की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। लोकद्गााही के मकसद की तरफ हिन्दुस्तान की प्रगति के दरमियान सैनिक सत्तापर नागरिक सत्ता को प्रधानता देने की लड़ाई अनिवार्य है। कांग्रेस को हमें राजनीतिक पार्टियों और साम्प्रदायिक संस्थाओं के साथ की गंन्दी होड  से बचाना चाहिये। इन और ऐसे ही दूसरे कारणों से अखिल भारत कांग्रेस कमिटी नीचे दिये हुए नियमों के मुताबिक अपनी मौजूदा संस्था को तोड ने और लोक-सेवक-संघ के रुप में प्रकट होने का निद्गचय करे। जरुरत के मुताबिक इन नियमों में फेरबदल करने का इस संघ को अधिकार रहेगा।
गाँव वाले या गाँव वालों के जैसी मनोवृत्ति वाले पाँच वयस्क पुरुषों या स्त्रियों की बनी हुयी हर एक पंचायत एक इकाई बनेगी।
पास-पास की ऐसी हर दो पंचायतों की, उन्हीं में से चुने हुये एक नेता की रहनुमाई में, काम करनेवाला एक दल बनेगा।
जब ऐसी १०० पंचायतें बन जायें, तब पहले दरजे के पचास नेता अपने में से दूसरे दरजे का एक नेता चुनें और इस तरह पहले दरजे का नेता दूसरे दरजे के नेता के मातहत काम करे। दो सौ पंचायतों के ऐसे जोड  कायम करना तब तक जारी रखा जाये, जब तक कि वे पूरे हिन्दुस्तान को न ढँक लें। और बाद में कायम की गयी पंचयतों का हर एक समूह पहले की तरह दूसरे दरजे का नेता चुनता जाये। दूसरे दरजे के नेता सारे हिन्दुस्तान के लिए सम्मिलित रीति से काम करें और अपने-अपने प्रदेद्गा में अलग-अलग काम करें। जब जरुरत महसूस हो, तब दूसरे दरजे के नेता अपने में से एक मुखिया चुनें और वह मुखिया चुनने वाले चाहें तब तक सब समूहों को व्यवस्थित करके उनकी रहनुमाई करें।
२९.०१.१९४८
- मो. क. गांधी

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