Thursday, October 18, 2012

शिक्षा

                              

शिक्षा धन अनमोल है, पढ़ने का करो जतन।

विद्वानों को दुनिया पूजती, आदर करते हर जन।।

शिक्षित लोगों को देखो, अलग है उनकी शान।

ना हो भले रुपया-पैसा, पर होता शिक्षा का स्वाभिमान।।

रुपया-पैसा भले खो जाये, छीन जाये हर चीज़।

पर विद्वान की ज्ञान न छीने, बाँटे से बढ़ती जाये।।

शिक्षित ही सोंच सकता है, सबके लिये कल्याण।

अशिक्षित तो पेट की खातिर, करता है हर काम।।

शिक्षित वे नहीं होते, जिन्हें शिक्षा का हो अभिमान।

शिक्षित वे भी नहीं जो लेते हर समय पुरखों का नाम।।

शिक्षित वे जो कभी सत्य पर दे-दे अपनी जान।

प्रेम, दया, क्षमा, त्याग जिनकी हो पहचान।।

                                                                                           - प्रभाकर कुमार 'सन्नी'

कविता

वे शब्दों के मोती, भावनाओं के धागों में गुंथे हुये,
जो आये जुबां पर यूं ही, वही कविता है।

जो सच्चे को सच्चा कहे, झूठे को झूठा,
जो डिगे नहीं सच्चार्इ से, बस वही कविता है।

जिसे न तोल सकता है धन, जिसे न डरा सकते हैं जन,
जो छोड़े ना धर्म का संग, हाँ! वही कविता है।

गिरिराज की तरह अडिग, गंगा की तरह पवित्र,
विचारों का बहता झरना, बस यही कविता है।

                                                     
                                                         & प्रभाकर कुमार 'सन्नी'

Sunday, August 5, 2012

जीवन की सीख

जीवन की राह में लगेंगे ठोकरें तो खूब,
पर, चलना संभल संभल कर तब ही तो सीख पाओगे.

        जब आएगा मुसीबत तब खाओगे तुम धोखे, 
        पर, यकीन खुद पे करना तब ही तो सीख पाओगे.


विपत्तियों में तेरे होगा साथ कोई,
मुसीबतों से लड़ना तब ही तो सीख पाओगे.

        कर स्वागत इन दुखों का, ये जीवन में आने - जाने हैं,
        फर्क अपनों - परायों में करना तब ही तो सीख पाओगे.

कर मदद तुम सभी की, इसमें कोई भेद कर,
देना किसी को खुशियाँ तब ही तो सीख पाओगे.

        माता - पिता की सेवा कर, गुरुजनों का आशीष ले,
                    जीवन के मुश्किल राहों पर तब ही तो चलते जाओगे.


                            # प्रभाकर कुमार 'सन्नी' #

Saturday, March 3, 2012

बेखबर

सुबह ७.३० बजे, पटना के प्राइम सड़क पर,
बेखबर शहर से वह,
बेखबर शहर के लोगों से,
बेखबर पास से गुजरते ऑटो, चमचमाती करों से वह,
बेखबर प्रदेश के विकास से, 
बेखबर हेमामालिनी के बिहार आगमन से वह,
बेखबर विकास पुरुष के वादों से,


पटना के प्राइम सड़क पर,
खबर उसे केवल अपनी जठराग्नि की,
खबर उसे बुझाने की,
चाहत है सिर्फ जीने की,


पटना के प्राइम सड़क पर,
बेखबर है बदलती दुनिया से वह,
बेखबर है दुनिया के रहनुमाओं से,
बेखबर है अपने भविष्य से वह,
बेखबर है अपने अतीत से, 
बेखबर है बाइबिल, कुरान से वह,
बेखबर है गीता, पुराण से,


पटना के प्राइम सड़क पर,
वह पत्तलों की ढेर में, निवालों की तलाश में,
चुन रहा है दानों को, पेट की आग बुझाने को,
यह साधारण भोजन नहीं है,
रईसों की पार्टियों में चखा जाने वाला आनाज,
एक - एक पत्तल में बचा सारा अनाज खा लेगा अकेले,
पास एक कुत्ता भी आपनी बारी के इंतजार में,


क्या यह वही देश भारत है,
क्या यह वही महान बिहार है,
क्या यह वही धरती है महापुरुषों की,
क्या इसी विकास की पहली बयार बही थी यहाँ से,
क्या पूर्वजों ने हमें यह मानवता विरासत में दी है,


तुम जियो अगर बेशर्म हो तुम, बेच सको हर चीज को,
देह बेचो, दिमाग बेचो,
ईमान बेचो, सम्मान बेचो,
बेटी बेचो, बेटा बेचो,
धर्म बेचो, मजहब बेचो,
जीवन और मरण भी बेचो,
है बाजार खुला हुआ यह,
तुम भी बिको, हमें भी बेचो . . .


                                          प्रभाकर कुमार 'सन्नी' 
लहू का रंग एक है, आमिर क्या गरीब क्या


लहू का रंग एक है, आमिर क्या गरीब क्या,
बने है एक खाक से दूर क्या करीब क्या.
वही है तन वही है जान, कब तलक छिपाओगे 
पहन के रेशमी लिबास तुम बदल न जाओगे 
सभी हैं एक जाती हम सवर्ण क्या अवर्ण क्या 
लहू का रंग एक है . . . . . . 


जी एक है तो फिर न क्यों दिलों का दर्द बाँट लें,
जिगर का दर्द बाँट ले, लबों का प्यार बाँट लें,
खता है सब समाज की, भले - बुरे नसीब क्या,
लहू का रंग एक है . . . . . . .


कोई जने हैं मर्द तो कोई जनि है ओरतें,
शारीर में भले हो फर्क, रूह सबकी एक है,
एक हैं जो हम सभी, विषमता की लकीर क्या,
लहू का रंग एक है आमिर क्या गरीब क्या ? ? ?

Tuesday, January 17, 2012

आँखिन


आँखिन में प्रीतिरस, रीति सब आँखिन में

आँखिन में अक्षर लिखत हैं सुघराई के,

आँखिन में काम औ ढिठाई सब आँखिन में

आँखिन में सील बसै सुरिसरनाई के

आलम सुकवी कहै अमृत है आँखिन में

आँखिन में जगजोति दोई हैं सुहाई के

काम के ततच्छिन सब लच्छिन हैं आँखिन में

आँखिन में भेद हैं भलाई और बुराई के।

''रास्ता''


हैं! रास्ते तो खुब पर] मंज़िल का पता चाहिए]
निभायेंगे हम साथ] पर उनसे भी वफा चाहिए।
चले हैं जिस पथ में कई आयेंगे उस पर मोड  भी]
लगेंगे अगर कोई ठोकर] तो गिरकर संभलना चाहिए॥

चल पड े हैं राह में करके बुलंद हौसले]
इस अंधेरी राह में बस] जुगनु का सहारा चाहिए।

काँटे] गड्‌ढे] पत्थरें हैं] मार्ग में बिखरे बहुत पर]
थाम ले जो बांह ऐसा कोई साथी चाहिए॥

आँखें पत्थर] खून पानी] बुझ चुके हैं दीप सारे]
कर सके जो रोद्गानी ऐसी उम्मीद चाहिए।

आ गये किस मोड  प,े सूझता नहीं जब रास्ता]
दिखा जो दे राह] ऐसा कोई दोस्त चाहिए॥

बाँटों खुद्गिायाँ भूल कर गम] आज यहाँ हर किसी को]
बस खुद्गिायाँ ही खुद्गिायाँ चाहिए।

हैं रास्ते तो खुब पर] मंजि ल का पता चाहिए।

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''हमारा गाँव''



इतना प्यारा गाँव हमारा, ऐसी हो इसकी पहचान।
छोटा-बड़ा का भेद नहीं हो रहते हों सब एक समान॥

नहीं कहीं भी बैर भाव हो, नहीं कहीं भी हिंसा।
ना किसी का डर हो यहाँ, ना हो कल की चिंता॥

भारत की पहचान यही है, पलती जहाँ पर सभ्यता।
फूलों की खुद्गाबु हो इतनी, झूम उठे मन सबका॥

छोटों को जहाँ मिले प्यार, और बड ों को मिले सम्मान।
जहाँ वचन की खातिर लोग दे दें अपनी जान॥

द्गिाक्षित हों हर जन, परन्तु तनिक नहीं अभिमान हो।
चलें धर्म पर सभी, मगर थोड ा बहुत विज्ञान हो॥

ना हो हिन्दू,  ना हो मुस्लिम जहाँ सभी इंसान हो।
किसी धर्म का बंध नहीं हो, किसी जाति का नाम ना हो॥

मेहनत सबका धर्म हो और कर्म ही सबकी पूजा।
भाईचारे की भावना हो सबमें, ना कोई पराया ना ही दूजा॥

देश प्रेम की भावना ऐसी दिम में कुर्बानी की जज्बात हो।
कोई देखे नहीं कुदृष्टी से देद्गा को, ऐसी उनमें बात हो॥

सभी नारी हो सीता जैसी, पर लक्ष्मीबाई सी शान भी हो।
मान-मर्यादा पहचान हो उनकी, पर इंदिरा गाँधी सी आन भी हो॥

बस यही है सपना अपना . . . !

इतना प्यारा गाँव हमारा, ऐसी हो इसकी पहचान,
छोटा-बड ा का भेद नहीं हो रहते हों सब एक समान॥


@ प्रभाकर 'सन्नी' @