Monday, May 30, 2011

भ्रष्टाचारः मजबूरी या आदत!


एक ऐसा देद्गा जिसकी पहचान ही विविधता है। अलग-अलग मौसम, अलग रंग-रुप के लोग, उनकी अपनी भाषा, संस्कृति, धर्म एवं समाज परन्तु अंतराष्ट्रीय स्तर पर सबकी एक पहचान, भारतीय। हमारा संविधान विद्गव का सबसे समृद्ध एवं विस्तृत संविधान है। भारत विद्गव का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देद्गा भी है इसकी एक वहज यह भी हो सकती है कि यहाँ का पर्यावरण मानव के लिये सबसे उपयुक्त है। हमारा उद्येद्गय देद्गा की विद्गोषता बयां करना कतई नहीं है क्योंकि ये सारी विद्गोषतायें जगजाहिर है। हम आपको इन विद्गोषताओं के माध्यम से भ्रष्टाचार की जड  में ले जाना चाहते हैं।


भ्रष्टाचार दो शब्द 'भ्रष्ट' तथा 'आचार' से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है बुरा नियम अथवा कानून, परन्तु इसका भावार्थ बहुत ही व्यापक है। हमारे अनुसार हर वो कार्य जो केवल 'मैं' को ध्यान में रखकर किया जाये, भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार के दो मुखय स्वरुप है- पहला मजबूरी, दूसरा आदत।

भ्रष्टाचारः मजबूरी
देद्गा की जो विद्गोषतायें उपर वर्णित की गई हैं उन्हीं से कुछ मजबूरियों का जन्म होता है। मैं भारत के स्वर्णिम इतिहास से भलीभांति परिचित हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि भारत अपनी संस्कृति एवं विचार से कभी विद्गवगुरु कहा जाता था। कालान्तर में इन संस्कृतियों एवं विचारों से लचीलापन गायब हो गया एवं इनमें कट्रता का उदय हुआ। जिन संस्कृतियों एवं विचारों से समाज का हर सदस्य/वर्ग लाभान्वित होता था वही आज समाज में असमानतायें फैला रही हैं। और यहीं जन्म होता है भ्रष्टाचार का-

एक व्यक्ति ईमानदारी की कमाई से अपना घर-परिवार चलाता है, अपने बच्चों में अच्छे संस्कार एवं ईमानदारी के गुण विकसित करता है। उसकी बेटी की शादी उसके योग्य लड़के से इस कारण नहीं हो पाती है क्योंकि उसके पास दहेज में देने के लिये पैसे नहीं है। उसका बेटा इसलिये बेरोजगार हो गया क्योंकि वह पैसे के अभाव में अच्छी एवं गुणवत्ता पूर्ण द्गिाक्षा प्राप्त नहीं कर सका।

एक सरकारी मुलाजि अपने साहब के बच्चों की देखा-देखी अपने बच्चे को भी तथाकथित अच्छे विद्यालय में पढ ाना चाहता है जिसके लिये उसे वेतन से ज्यादा पैसों की आवद्गयकता है। कैसे आयेंगे ये पैसे? सिफारिद्गा, भ्रष्टाचार की जड  के लिये यह भी एक पोषक तत्व है। सिफारिद्गा से मजबूरी पैदा होता है, और फिर जन्म होता है भ्रष्टाचार का। खैर यह तो कुछ समाजिक कारण है अब मैं कुछ राजनैतिक मजबूरियों की तरफ आपका ध्यान ले जाना चाहता हूँ।

भ्रष्टाचार से सबसे अधिक प्रभावित होता है समाज के सबसे निचले पायदान पर स्थित एक गरीब, और अद्गिाक्षित परिवार जो केवल शोषित होता है। सरकार ने उनके लिये कुछ योजनायें चलाई है। निचले स्तर पर इन योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई है, सरकार उन्हें भ्रष्टाचार करने के लिये मजबूर भी करती है। उदाहरण कई हैं परन्तु कुछ पर चर्चा करें-

आँगनबाड़ी कार्यकर्ता जिसकी जिम्मेदारियों का अंदाजा हम इसी से लगा सकते हैं कि इसे हर रोज  ४० छोटे बच्चों को चार घंटे अपने पास रखना है। उनके खेलकूद, व्यवहारिक द्गिाक्षा, पोषण एवं समुचित विकास का ध्यान रखना है, साथ ही गांव की अन्य महिलाओं एवं किद्गाोरी बालिकाओं के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना है। इन सभी कार्यों के लिये उसे महीने के १५०० रुपये दिये जाते हैं वह भी १०-१२ महीने के अंतराल पर। इससे ईमानदारी की अपेक्षा करना हमारी बेवकूफी है। 

हमारे देद्गा में, सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री, मुखयमंत्री अथवा उपर स्तर के अन्य प्रतिनिधि, सभी को रहने के लिये घर, घूमने के लिये गाड ी, एवं खर्च करने के लिये मोटी रकम वेतन के रुप में दी जाती है जबकि पंचायत प्रतिनिधियों जो जनता के सबसे करीब हैं तथा जो वास्तव में जनता के दुख-सुख में शरीक होते हैं एवं समाज के विकास में जिनकी अहम भूमिका हो सकती है से अपेक्षा की जाती है कि वह इमानदारी पूर्वक, निःस्वार्थ भाव से मुफ् में समाज की दिन-रात सेवा करे। यह कोरे सपने मात्र हैं। 

जन वितरण प्रणाली का दुकानदार, जिसे सरकार द्वारा जिम्मेदारी दी गई है कि वह गरीबों को जीने के लिये सरकार के तरफ से अनाज का वितरण करे। उसे इस कार्य के लिये सरकार द्वारा कुछ कमीद्गान दिये जाते हैं जिसमें वह अपने परिवार का पेट तक नहीं भर सकता। उससे हमारी अपेक्षा होती है कि वह खुद सपरिवार भूखे रहकर अपने हाथों से दूसरों को अनाज बांटे। यह एक भ्रम मात्र है और कुछ नहीं। ऐसे कई उदाहरण हमारे आस-पास मौजूद हैं जो हमारे समाज एवं सरकारी तंत्र से मजबूर हैं, और भ्रष्टाचार करते हैं।


To be conti .........

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