इतना प्यारा गाँव हमारा, ऐसी हो इसकी पहचान।
छोटा-बड़ा का भेद नहीं हो रहते हों सब एक समान॥
नहीं कहीं भी बैर भाव हो, नहीं कहीं भी हिंसा।
ना किसी का डर हो यहाँ, ना हो कल की चिंता॥
भारत की पहचान यही है, पलती जहाँ पर सभ्यता।
फूलों की खुद्गाबु हो इतनी, झूम उठे मन सबका॥
छोटों को जहाँ मिले प्यार, और बड ों को मिले सम्मान।
जहाँ वचन की खातिर लोग दे दें अपनी जान॥
द्गिाक्षित हों हर जन, परन्तु तनिक नहीं अभिमान हो।
चलें धर्म पर सभी, मगर थोड ा बहुत विज्ञान हो॥
ना हो हिन्दू, ना हो मुस्लिम जहाँ सभी इंसान हो।
किसी धर्म का बंध नहीं हो, किसी जाति का नाम ना हो॥
मेहनत सबका धर्म हो और कर्म ही सबकी पूजा।
भाईचारे की भावना हो सबमें, ना कोई पराया ना ही दूजा॥
देश प्रेम की भावना ऐसी दिम में कुर्बानी की जज्बात हो।
कोई देखे नहीं कुदृष्टी से देद्गा को, ऐसी उनमें बात हो॥
सभी नारी हो सीता जैसी, पर लक्ष्मीबाई सी शान भी हो।
मान-मर्यादा पहचान हो उनकी, पर इंदिरा गाँधी सी आन भी हो॥
बस यही है सपना अपना . . . !
इतना प्यारा गाँव हमारा, ऐसी हो इसकी पहचान,
छोटा-बड ा का भेद नहीं हो रहते हों सब एक समान॥
@ प्रभाकर 'सन्नी' @
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