लड़ी नहीं लड़ाई
मैंने,
ना कोई मेरा
दुश्मन है.
फिर भी, मैं हारा
हुआ इन्सान हूँ.
मेरा संघर्ष
स्वयं से,
हर वक्त चलता, द्वन्द
युद्ध है.
सुना था मैंने जितने
को,
मन पर विजय जरुरी
है.
हर ख्वाहिश
कुचले, अरमां मसले,
मन को बहुत
संभाला मैंने,
ना मन हारा, ना
मैं जीता,
और सब कुछ गंवाया
मैंने,
क्यूंकि, मैं
हारा हुआ इंसान हूँ.
बहुत प्यार था
दिल में मेरे,
चला उसे सब ओर
लुटता,
चंद लोग थे मेरे
अपने,
कुछ खून से, कुछ
जीवन से,
विचारों के धरातल
पर उनसे भी मैं जा टकराया,
हर ठोकर पर
गिरते-पड़ते,
रोते-हँसते
उन्हें मनाया,
मेरे लड़ाई ऐसी है
कि . . .
हार कर सब कुछ
गावऊँ, जीत कर भी हार जाऊं.
क्यूंकि, मैं
हारा हुआ इंसान हूँ.
लोग कहते दिल की
सुन लो, दुनिया सारी तेरी होगी,
ये अजब सा खेल है
कि,
दिल की सुनने जब
चला मैं, सब ने मेरी जुबां क़तर दी,
हँसना-रोना, कुछ
ना आये, पत्थर सा एक बुत बना के,
खेलते हैं सभी
मुझसे, मजबूत और गंभीर कहकर,
क्यूंकि, मैं हारा हुआ इंसान हूँ . . .
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