Thursday, September 24, 2015

मैं निःशब्द हूँ . …

एक दिन मेरे अशांत मन ने मुझसे पूछा एक सवाल, मानव कौन है? माथा रगड़ा, सिर धुना, फिर मुझको मिला ये जवाब . . .
मानव वो जो, मानव से मानव पैदा करे,
मानव वो जो, मानव की मानवता पर मरे।
            मानव वो जो, मानव के बीच समानता को समझे,
            मानव वो जो, सभी मानव को अपना सा मानव समझे।
मानव वो जो, मानवों पर प्रेम-करुणा बरसाये,
मानव वो जो, मानव से उचित संबंध बनाये।
            मानव वो जो, शासन- सत्ता से, मानव को उपर माने,
            मानव वो जो, मानव हित में ही अपना हित जाने।

एक दिन मेरे अधर्मी मन ने पुछा मुझसे ये सवाल, धर्म क्या है? धर्म की बात से डरते-डरते मुझको सुझा ये जवाब . . .
धर्म वही जो अन्य धर्मों को उचित सम्मान पहुंचाए]
धर्म वही जो लोगों में मानवता का पाठ पढ़ाए।
            धर्म वही जो कर्मकाण्डों से, कर्म को उँचा माने]
            धर्म वही जो किताबों से से जीवन को उँचा जाने।
धर्म वही जो सत्य, अहिंसा, उधम का राह बताए,
धर्म वही जो, वैरभाव सब मानव मन से मिटाये।
                       
एक दिन मेरे विद्रोही मन ने पूछा मुझसे एक सवाल, सत्ता क्या है? हमने अपना अपराध मानकर दिया यही जवाब . . .
सत्ता वही, जिसमें दिलों पर डर का हो साम्राज्य,
सत्ता वही, जिसमें दण्डधर करे बहुजन पर राज।
            सत्ता वही, जिसमें हम खुद को औरों से श्रेष्ट बताए,
            सत्ता वही, जिसमें राजा, प्रजा की आंसू बेच कमाए।
सत्ता वही, जहां धोखे से अपना नाम करें हम,
सत्ता वही, जहां लूट से अपना घर भरे हम।
            सत्ता वही, जो औरों के अधिकार छीनने में अपनी शक्ती जाने,
            सत्ता जो, अधिकार साथ में कर्तव्य जुड़ा है यह कभी ना माने।

इसके बाद मेरे बागी मन ने मुझसे बगावत की,
कहा तुम्हें कुछ नहीं पता है, सब उत्तर गलत है दी।
दुनिया वैसी नहीं है, जैसा कि तुम समझते हो,
मेरी बात सुनो ध्यान से जो मैं तुम्हें कहता हूँ,
सारे प्रश्नो का एक उत्तर मैं तुमको देता हूँ।
मानव जो धर्म की सीढ़ी से सत्ता तक पहुंच बनाये,
सत्ता को ही धर्म बताकर मानव पर शासन चलाए।

            सुन कर उत्तर मेरे मुंह से निकले एक न बोल, 
             मैं नि: शब्द हूँ . . . 
                                                                                                                                  ~ सन्नी ~

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