Saturday, March 3, 2012

बेखबर

सुबह ७.३० बजे, पटना के प्राइम सड़क पर,
बेखबर शहर से वह,
बेखबर शहर के लोगों से,
बेखबर पास से गुजरते ऑटो, चमचमाती करों से वह,
बेखबर प्रदेश के विकास से, 
बेखबर हेमामालिनी के बिहार आगमन से वह,
बेखबर विकास पुरुष के वादों से,


पटना के प्राइम सड़क पर,
खबर उसे केवल अपनी जठराग्नि की,
खबर उसे बुझाने की,
चाहत है सिर्फ जीने की,


पटना के प्राइम सड़क पर,
बेखबर है बदलती दुनिया से वह,
बेखबर है दुनिया के रहनुमाओं से,
बेखबर है अपने भविष्य से वह,
बेखबर है अपने अतीत से, 
बेखबर है बाइबिल, कुरान से वह,
बेखबर है गीता, पुराण से,


पटना के प्राइम सड़क पर,
वह पत्तलों की ढेर में, निवालों की तलाश में,
चुन रहा है दानों को, पेट की आग बुझाने को,
यह साधारण भोजन नहीं है,
रईसों की पार्टियों में चखा जाने वाला आनाज,
एक - एक पत्तल में बचा सारा अनाज खा लेगा अकेले,
पास एक कुत्ता भी आपनी बारी के इंतजार में,


क्या यह वही देश भारत है,
क्या यह वही महान बिहार है,
क्या यह वही धरती है महापुरुषों की,
क्या इसी विकास की पहली बयार बही थी यहाँ से,
क्या पूर्वजों ने हमें यह मानवता विरासत में दी है,


तुम जियो अगर बेशर्म हो तुम, बेच सको हर चीज को,
देह बेचो, दिमाग बेचो,
ईमान बेचो, सम्मान बेचो,
बेटी बेचो, बेटा बेचो,
धर्म बेचो, मजहब बेचो,
जीवन और मरण भी बेचो,
है बाजार खुला हुआ यह,
तुम भी बिको, हमें भी बेचो . . .


                                          प्रभाकर कुमार 'सन्नी' 

No comments:

Post a Comment