जीवन
का भार ढोते हुये, मर-मर कर जीते लोग यहां,
भूख, बिमारी से त्रस्त हो मानवता कराहती जहाँ,
जहां
हर सुबह कोर्इ जंग की एलान और रात मौत सी सन्नाटा।
जब
भाग्यवाद के चक्कर में हम हाथ पर हाथ धर बैठे हों,
अपनी
कायरता को जब हम ईश्वर की मर्जी कहते हों,
ये
दुनिया तब ना बदली थी, जमाना तब ना बदलेगा।।
बाजारवाद
में हर चीज़ की, कीमत तय की जाती है।
जिस्मों की हाटें सजती हैं, रिश्तों के सौदे होते हैं,
आंसू
और पानी में जब को फर्क ना मानी जाती हो,
न्याय
की मंदिर में जब, अन्यायें बांटी जाती हो,
इंसानों
की कीमत जब, मषीनों से कम आंकी जाती हो,
सैंकड़ो
लोगों द्वारा जब, अरबों का शोषण होता हो,
तब
लोगों के दिल से, बस एक आवाजें आती हैं
ये
दुनिया अब ना बदलेगी, जमाना अब ना बदलेगा।।
हाड़तोड़
मेहनत पर भी जब, घर में बच्चे भूखे हों,
कानून
और पुलिस से ही, जब जनता डरने लगती है,
दिल
के किसी कोने में जब, चिनगारी सुलगने लगती है,
हर
घर से धुआं सा उठता है, हर तरफ धुंध छा जाता है,
अबला
जब चंडी बन करके दुस्शासन से टकरायेंगी,
भाग्य
छोड़ जब युवा अपनी मेहनत में विश्वास जगायेंगे,
मंदिर-मसिजद
तज कर जब संघर्ष को पूजा मानेंगे,
ये
दुनिया तब ही बदलेगी, ज़माना तब ही बदलेगा।।
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