Tuesday, March 17, 2015

लड़ार्इ

(यह कविता बराबरी, सम्मान और स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाली महिलाओं को समर्पित है। वैसी महिलायें जिन्होंने अपनी सीसकियों को अपनी नियती मान लिया है यह कविता मैं उन्हें भी अर्पित करना चाहता हूँ।)


लड़ेंगे हम, लड़ेंगे हम
लड़ार्इ है अधिकार की, जीतेंगे या मरेंगे हम!
लड़ेंगे हम - - - -

बेटी-बहन, माँ-बहू से अलग भी पहचान हो,
समाज के इन संबोधनों से अलग भी एक नाम हो,
हमारा हर प्रयास एक मुकाम तक पहँच सके,
लड़ार्इ है अरमानों की, मुकाम तक पहुँचेंगे हम,

जननी हैं हम, पालक भी हैं,
देष और समाज के विकास के वाहक भी हैं,
अबला अगर समझते हो तो मिट जायेंगी हसितयाँ,
हर जूल्म की कलार्इ को मोड़ेंगे हम, तोडेंगे हम,
लड़ार्इ है स्वाभिमान की, लड़ेंगे हम, जीतेंगे हम।

बराबरी और सम्मान का हमारा भी अधिकार हो,
शोषण के खिलाफ हमारे हाथ में तलवार हो,
प्रेम, करुणा, अहिंसा का समाज में प्रचार हो,
राक्षसों के कौम को ललकार कर मिटायेंगे,
लड़ार्इ है सम्मान की, जीयेंगे या मरेंगे हम।

आओ ऐसी दुनिया हम मिलकर के बनायेंगे,
ऐसी दुनियाँ जहाँ हमारे सपने भी साकार हों,
ज्मीन पर, आकाश पर, संसद पर भी अधिकार हो,
समाज के किले की हम नींव हो, गुंबद भी हों,
लड़ार्इ है आकाश की लड़ेंगे हम, पायेंगे हम!

लड़ार्इ है अधिकार की हर हाल में जीतेंगे हम!
लड़ेंगे हम, लड़ेंगे हम- - -

                                      सन्नी ~

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